होली मे शराफत क्या करना है...
प्रस्तुत कविता तंज है उन लोगों पर जिनको होली में "हर हालातों" में मजे लेने होते हैं। क्या होली का त्यौहार इसी ध्येय के लिए होता है की सबको रंग लगाया जाना चाहिए, बिना यह जाने की सामने वाला/वाली इन सब चीजों के लिए तैयार है या नही। यह "हर हालातों" वाली होली ही हिंसा को बढ़ावा देती है, कहीं न कहीं यह यौन शोषण की ओर अग्रसर भी करती है।
आ गया फागुन है होली आज,
क्या शर्म हया, क्या इज्जत लाज।
रची है साजिश रचेंगे सबको,
क्यों सुने कोई चीख-आवाज।
वो भाभी है, वो साली है,
वो अकेली लड़की का कपड़ा खाली है,
डालो पानी, कपड़े गीले में बदन दिखेगा,
इस होली भी भंग चढेगा, रंग जमेगा।
आ गया फागुन है होली आज,
क्या शर्म हया, क्या इज्जत लाज।
रची है साजिश रचेंगे सबको,
क्यों सुने कोई चीख-आवाज।
वो भाभी है, वो साली है,
वो अकेली लड़की का कपड़ा खाली है,
डालो पानी, कपड़े गीले में बदन दिखेगा,
इस होली भी भंग चढेगा, रंग जमेगा।
हमने कॉलेज कैम्पस मे हमेशा देखा है की चार दिन बाद भी जबरजस्त, जबरजस्ती होली खेली जाती है।
वो एक लड़की आफिस जा रही,
डालो रंग उसकी इजाजत क्या करना है।
होगी किसी घर की इज्जत,
उसके इज्जत की हिफाजत क्या करना है।
अरे मेरी बहन होगी कहीं, मेरे बेटी होगी कभी,
कुछ हो जाये उसके साथ तो शिकायत क्या करना है।
वो मुश्लिम है डालो रंग, मजे तो ले लें उसके संग,
हो जाने दो बगावत क्या करना है।
बड़ी-बड़ी साजिश रचते हैं, सारे मजे आज लेते हैं,
अरे साहब शराफत क्या करना है।
Gjb Bhai ek no
ReplyDelete#Rohit_robin_pandey
Bahut khub bhai
ReplyDelete#Bapu
Right
ReplyDelete#Bapu
Gjjbb mere bhai
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