आकाशवाणी {एक क़िस्सा}


पूजा का माहौल है, शंख-घंटी-आरती की ध्वनि कानों में रसगुल्ले के शीरे की तरह प्रतीत हो रही थी।

रीवा की एक गली में तिवारी परिवार के घर आरती खत्म होने से पहले ही बाल श्री कृष्ण की आवाज में आकाश वाणी होती है,

"स्वर्ग लोक में तुम्हारे बालक को हमने याद किया है आज उसका पृथ्वी लोक पे आखिरी दिन है, तिवारी परिवार का एक दीपक आज रात बुझ जायगा, जो भी आखिरी इच्छा हो पूरी कर दें...
खुशी-खुशी विदा होगा तो आत्मा तृप्त हो जाएगी"

यह सुनते ही तिवारी जी के छोटे सुपुत्र कृष्णा तिवारी (उम्र10) जिनकी तबीयत अक्सर नासाज रहती थी, की सीटी बजना बंद जैसे धड़कने थम गयी, घंटी हाथ से छूटी और पैर पे जा गिरी,

"हे प्रभु, मेरे ऊपर ऐसा जुल्म क्यों,
अभी तो मैंने कुछ देखा ही नही...
छप्पन भोग वाले की सारी मिठाइयां भी नही चखी..."

माँ-बाबू जी का दिल बैठ गया, आंखों की बांध छूटने वाला था की आकाशवाणी के आखिरी शब्द याद आ गये,

माँ ने मन ही मन रोते हुए- "बेटा इसमें डरने की क्या बात है?, प्रभु ने अपने पास बुलाया है, अब तू दुनिया के दुखों से दूर स्वर्ग में रहेगा।"

बाबू जी- "चल बता बेटा क्या इच्छा है तेरी?"

बड़े भैया तिवारी श्री बलराम जी(उम्र12) चिंतित कम परेशान ज्यादा दिख रहे थे कि-भइया कोई मेरी तरफ तो ध्यान ही नही दे रहा, आखिर मैं भी इस परिवार का चिराग हूँ, कोई मेरी तरफ ध्यान दे तो कुछ फरमाऊं, कहने को मुँह खोला ही कि...


"मिठाई खानी है,
छप्पन भोग वाले के यहां की,
सारी की सारी वेराइटी..." कृष्णा तिवारी


मजदूर बेवस दुखी बाप ने सारा कुछ खोज कर एक पचास, तीन 20 और पांच 10-10 के नोट निकाले जो कुल मिलाकर एक सौ साठ रुपये हुए, जिनमे एक किलो मिठाई भी नही आ सकती थी,

कुछ सोच कर दुकान जाने ही वाले होते है कि ध्यान बलराम के गुल्लक पे पड़ी जिसमें बलराम, गलियों में पड़ी दारू की सीसियां बेंच-बेंच कर रुपये डालता था।

बलराम, बाबू जी की आँखे पढ़ पाता इससे पहले ही उस गुल्लक के टुकड़े जमीन पे धूल चाट रहै थे।
 कई एक, दो, पाँच के सिक्के निकले कुछ दस की नोटें भी निकलीं इस प्रकार उसमें दो सौ तेईस रुपये निकले।

बलराम की अब तक की जिंदगी की कमाई के सिर्फ तेईस रुपये उसके हाथ लगे, बांकी 200 बाबू जी ने मिठाई के लिए ले लिया।

अब बाबू जी निकल गये।

कृष्णा की याद आता है-उसने पहली बार, तीसरी कक्षा में खाई थी कलाकंद।
उसका कृष्णा की जिह्वा पे ऐसा असर हुआ की मानो मिठाई खुद कह रही हो
"सरकार नही, मचलें मत, आप बिल्कुल कष्ट ना करे, मैं खुद आपकी लारों की नदी में घुल जाती हूँ और तन-बदन तृप्त कर देती हूँ"


अब बाबूजी तीन पाव मिठाई के साथ घर में पेश हुए, बड़ी चिरौरी-विनती के बाद दुकानदार ने सारी मिठाइयों के एक-एक पीस दिये थें।

कृष्णा के हाथ में मिठाई का डिब्बा आते ही सब भूल भाल गया और बस जमीन पे बैठ, गोद पे डिब्बा रख व्यस्त हो गया।

कुछ एक तिहाई मिठाई खाई की पेट भर गया, बची मिठाई पे बड़े भईया लपके...

"भाई... छू मत ना देना, भगवान के पास मुझे जाना है तुम्हे नही"~कृष्णा

"बेटा ऐसा नही बोलते बड़े भइया है तुम्हारे...
बलराम, तुम तो समझदार हो तुमको बाद में दिला देंगे"~माँ


बलराम तिवारी के सब्र का बांध टूट गया और वो फूट पड़े~ "आकाशवाणी वाला इस घर का चिराग मैं भी तो हो सकता हूँ ना, तो सिर्फ उसकी खातिरदारी क्यों?
मेरा भी इस पृथ्वी पे आखिरी दिन हो सकता है।"

"ओहोहोहो...
कुंडली में गड़बड़ मेरी है, तबीयत खराब मेरी रहती है, और मर तुम कैसे जाओगे, नही मैं ही मरने वाला हूँ प्रभु ने मुझे बुलाया है"~कृष्णा

बलराम~"बड़े आये मरने वाले...
आकाशवाणी में तिवारी परिवार का चिराग कहा था...
तुझे कचरे के ढेर से उठा कर लाये थे,
इस हिसाब से मेरा आखिरी दिन है, इस मिठाई पे मेरा हक है।"

दोनो भाइयो की बहस सुनते हुए माँ-बाबूजी का दिल बैठ गया, दिल के झटके ने उनका संतुलन बिगाड़ दिया, एक-दूसरे के सहारे दीवाल पे टिक कर जमीन पे बैठे गये।

अब ना रोका हुआ दोनो से और आह भरी चीख के साथ दोनो रो पड़े, बिलख-बिलख के रो रहे थे,
आसूं तो ऐसे के जैसे नदी।

रोने की आवाज सुनकर रामू काका ने दरवाजा खटखटाया,
बाहर भीड़ जमा होने लगी।

माँ-बाबूजी को यूँ रोते-बिलखते देख बेटों के हाथ से मिठाई का डब्बा छूट गया, और हाथ जा पहुचा उनकी गालों पे उन गिरते आसुंओ को संभालने।

उनको रोता देख दोनो को रोना आ गया,
बिलखते हुए बलराम ने माँ से कह ही दिया
"माँ मत रो माँ...
वो आकाशवाणी तो मेरा ही किया धरा है, आज के जमाने में भगवान कहाँ?"         
                             
                story by @sonideenbandhu

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